मेरे जन्म लेते ही मेरी मां ने मुझे कुछ - कुछ सिखाना शुरू कर दिया होगा । जिसे उसने आजीवन जारी रखा । पिता जी जब तक रहे सदैव समझाते ही रहे । मेरे प्रारम्भिक शिक्षक रहे मेरे माता-पिता । " कभी, लोरी - गा - के - सिखाए - मां, कभी, बनि - शिक्षक - दुलराइ । मेरे - पूज्य - पिता - की - शिक्षा - गरिमा, पग - पग, पन - बनि - छाइ ।।" भूमि ने, आंगन की धूल ने, वातावरण ने, सुबह - शाम ने , चन्दा - सूरज ने और मुझे सहलाती हुई पवन ने शिक्षा दी । प्रकृति का हर कारक मेरे लिए शिक्षक बना । " पढ़ाते - रहे - मुझे, प्रकृति - के - मौन, सब - कुछ - करि - प्रतिपल । प्रकृति - की - कोई - शिक्षा - न - गौण, सत - शाश्र्वत - शुभ - फल ।।“ जैसे - जैसे जिन्दगी एक - एक कदम आगे बढ़ी, स्तर और मानक देखकर शिक्षक मिलते रहे और मुझ पर कृपा करते रहे । ये सब भगवान जी कृपा के रूप थे और मुझ पर कृपा करने केलिए ही मेरे शिक्षक बने । मैं जो भी हूं उस सबका सारा श्रेय मेरे सभी शिक्षकों को है ।इससे सम्बन्धित समय समय पर जो भी भाव मन में आए उन सबका शाब्दिक निरुपण है यह लघु पुस्तक । सादर सविनय प्रस्तुत ।